विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।

रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।

viṣhayā vinivartante nirāhārasya dehinaḥ rasa-varjaṁ raso ’pyasya paraṁ dṛiṣhṭvā nivartate

।।2.59।। निराहारी (इन्द्रियोंको विषयोंसे हटानेवाले) मनुष्यके भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, पर रस निवृत्त नहीं होता। परन्तु इस स्थितप्रज्ञ मनुष्यका तो रस भी परमात्मतत्त्वका अनुभव होनेसे निवृत्त हो जाता है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण