न हि कश्िचत्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।

कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।।3.5।।

na hi kaśhchit kṣhaṇam api jātu tiṣhṭhatyakarma-kṛit kāryate hyavaśhaḥ karma sarvaḥ prakṛiti-jair guṇaiḥ

।।3.5।। कोई भी मनुष्य किसी भी अवस्थामें क्षणमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता; क्योंकि (प्रकृतिके) परवश हुए सब प्राणियोंसे प्रकृतिजन्य गुण कर्म कराते हैं।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण