कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।

इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।3.6।।

karmendriyāṇi sanyamya ya āste manasā smaran indriyārthān vimūḍhātmā mithyāchāraḥ sa uchyate

।।3.6।। जो कर्मेन्द्रियों- (सम्पूर्ण इन्द्रियों-) को हठपूर्वक रोककर मनसे इन्द्रियोंके विषयोंका चिन्तन करता रहता है, वह मूढ़ बुद्धिवाला मनुष्य मिथ्याचारी (मिथ्या आचरण करनेवाला) कहा जाता है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण