न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।

नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि।।3.22।।

na me pārthāsti kartavyaṁ triṣhu lokeṣhu kiñchana nānavāptam avāptavyaṁ varta eva cha karmaṇi

।।3.22।। हे पार्थ! मुझे तीनों लोकोंमें न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करनेयोग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्तव्यकर्ममें ही लगा रहता हूँ।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण