ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।

सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।3.32।।

ye tvetad abhyasūyanto nānutiṣhṭhanti me matam sarva-jñāna-vimūḍhāns tān viddhi naṣhṭān achetasaḥ

।।3.32।। परन्तु जो मनुष्य मेरे इस मतमें दोष-दृष्टि करते हुए इसका अनुष्ठान नहीं करते, उन सम्पूर्ण ज्ञानोंमें मोहित और अविवेकी मनुष्योंको नष्ट हुए ही समझो।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण