यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव।

येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि।।4.35।।

yaj jñātvā na punar moham evaṁ yāsyasi pāṇḍava yena bhūtānyaśheṣheṇa drakṣhyasyātmanyatho mayi

।।4.35।। जिस- (तत्त्वज्ञान-) का अनुभव करनेके बाद तू फिर इस प्रकार मोहको नहीं प्राप्त होगा, और हे अर्जुन ! जिस- (तत्त्वज्ञान-) से तू सम्पूर्ण प्राणियोंको निःशेषभावसे पहले अपनेमें और उसके बाद मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मामें देखेगा।

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