शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।

कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।5.23।।

śhaknotīhaiva yaḥ soḍhuṁ prāk śharīra-vimokṣhaṇāt kāma-krodhodbhavaṁ vegaṁ sa yuktaḥ sa sukhī naraḥ

।।5.23।। इस मनुष्य-शरीरमें जो कोई (मनुष्य) शरीर छूटनेसे पहले ही काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले वेगको सहन करनेमें समर्थ होता है, वह नर योगी है और वही सुखी है।

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