कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।

अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि।।6.38।।

kachchin nobhaya-vibhraṣhṭaśh chhinnābhram iva naśhyati apratiṣhṭho mahā-bāho vimūḍho brahmaṇaḥ pathi

।।6.38।। हे महाबाहो ! संसारके आश्रयसे रहित और परमात्मप्राप्तिके मार्गमें मोहित अर्थात् विचलित -- इस तरह दोनों ओरसे भ्रष्ट हुआ साधक क्या छिन्न-भिन्न बादलकी तरह नष्ट तो नहीं हो जाता ?

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण