उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।

आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।7.18।।

udārāḥ sarva evaite jñānī tvātmaiva me matam āsthitaḥ sa hi yuktātmā mām evānuttamāṁ gatim

।।7.18।। पहले कहे हुए सब-के-सब भक्त बड़े उदार (श्रेष्ठ भाववाले) हैं। परन्तु ज्ञानी (प्रेमी) तो मेरा स्वरूप ही है -- ऐसा मेरा मत है। कारण कि वह युक्तात्मा है और जिससे श्रेष्ठ दूसरी कोई गति नहीं है, ऐसे मेरेमें ही दृढ़ आस्थावाला है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण