इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।

सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।7.27।।

ichchhā-dveṣha-samutthena dvandva-mohena bhārata sarva-bhūtāni sammohaṁ sarge yānti parantapa

।।7.27।। हे भरतवंशमें उत्पन्न परंतप ! इच्छा (राग) और द्वेषसे उत्पन्न होनेवाले द्वन्द्व-मोहसे मोहित सम्पूर्ण प्राणी संसारमें मूढ़ताको अर्थात् जन्म-मरणको प्राप्त हो रहे हैं।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण