निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।

न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।1.31।।

nimittāni cha paśhyāmi viparītāni keśhava na cha śhreyo ’nupaśhyāmi hatvā sva-janam āhave

।।1.31।। हे केशव! मैं लक्षणों - (शकुनों) को भी विपरीत देख रहा हूँ और युद्ध में स्वजनोंको मारकर श्रेय (लाभ) भी नहीं देख रहा हूँ।

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