मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः।

राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः।।9.12।।

moghāśhā mogha-karmāṇo mogha-jñānā vichetasaḥ rākṣhasīm āsurīṁ chaiva prakṛitiṁ mohinīṁ śhritāḥ

।।9.12।। जिनकी सब आशाएँ व्यर्थ होती हैं, सब शुभ-कर्म व्यर्थ होते हैं और सब ज्ञान व्यर्थ होते हैं अर्थात् जिनकी आशाएँ, कर्म और ज्ञान सत्-फल देनेवाले नहीं होते, ऐसे अविवेकी मनुष्य आसुरी, राक्षसी और मोहिनी फकृतिका आश्रय लेते हैं।

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