दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।

सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।।

divya-mālyāmbara-dharaṁ divya-gandhānulepanam sarvāśhcharya-mayaṁ devam anantaṁ viśhvato-mukham

।।11.10 -- 11.11।। जिसके अनेक मुख और नेत्र हैं, अनेक तहरके अद्भुत दर्शन हैं, अनेक दिव्य आभूषण हैं, हाथोंमें उठाये हुए अनेक दिव्य आयुध हैं तथा जिनके गलेमें दिव्य मालाएँ हैं, जो दिव्य वस्त्र पहने हुए हैं, जिनके ललाट तथा शरीरपर दिव्य चन्दन, कुंकुम आदि लगा हुआ है, ऐसे सम्पूर्ण आश्चर्यमय, अनन्त रूपोंवाले तथा चारों तरफ मुखवाले देव-(अपने दिव्य स्वरूप-) को भगवान् ने दिखाया।

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