अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं

पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं

पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।

aneka-bāhūdara-vaktra-netraṁ paśhyāmi tvāṁ sarvato ’nanta-rūpam nāntaṁ na madhyaṁ na punas tavādiṁ paśhyāmi viśhveśhvara viśhva-rūpa

।।11.16।। हे विश्वरूप ! हे विश्वेश्वरव ! आपको मैं अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रोंवाला तथा सब ओरसे अनन्त रूपोंवाला देख रहा हूँ। मैं आपके न आदिको, न मध्यको और न अन्तको ही देख रहा हूँ।

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