अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा

भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।

तदेव मे दर्शय देव रूपं

प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.45।।

adṛiṣhṭa-pūrvaṁ hṛiṣhito ’smi dṛiṣhṭvā bhayena cha pravyathitaṁ mano me tad eva me darśhaya deva rūpaṁ prasīda deveśha jagan-nivāsa

।।11.45।। मैंने ऐसा रुप पहले कभी नहीं देखा। इस रूपको देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और (साथ-ही-साथ) भयसे मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने उसी देवरूपको (सौम्य विष्णुरूपको) दिखाइये। हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप प्रसन्न होइये।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण