ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।

ye tu sarvāṇi karmāṇi mayi sannyasya mat-paraḥ ananyenaiva yogena māṁ dhyāyanta upāsate

।।12.6।।परन्तु जो कर्मोंको मेरे अर्पण करके और मेरे परायण होकर अनन्ययोगसे मेरा ही ध्यान करते हुए मेरी उपासना करते हैं।

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