समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।।12.18।।

samaḥ śhatrau cha mitre cha tathā mānāpamānayoḥ śhītoṣhṇa-sukha-duḥkheṣhu samaḥ saṅga-vivarjitaḥ

।।12.18।।जो शत्रु और मित्रमें तथा मान-अपमानमें सम है और शीत-उष्ण (अनुकूलता-प्रतिकूलता) तथा सुख-दुःखमें सम है एवं आसक्तिसे रहित है, और जो निन्दास्तुतिको समान समझनेवाला, मननशील, जिस-किसी प्रकारसे भी (शरीरका निर्वाह होनेमें) संतुष्ट, रहनेके स्थान तथा शरीरमें ममता-आसक्तिसे रहित और स्थिर बुद्धिवाला है, वह भक्तिमान् मनुष्य मुझे प्रिय है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण