यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति।तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।13.31।।

yadā bhūta-pṛithag-bhāvam eka-stham anupaśhyati tata eva cha vistāraṁ brahma sampadyate tadā

।।13.31।।जिस कालमें साधक प्राणियोंके अलग-अलग भावोंको एक प्रकृतिमें ही स्थित देखता है और उस प्रकृतिसे ही उन सबका विस्तार देखता है, उस कालमें वह ब्रह्मको प्राप्त हो जाता है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण