उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते।।14.23।।

udāsīna-vad āsīno guṇair yo na vichālyate guṇā vartanta ity evaṁ yo ’vatiṣhṭhati neṅgate

।।14.23।।जो उदासीनकी तरह स्थित है और जो गुणोंके द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता तथा गुण ही (गुणोंमें) बरत रहे हैं -- इस भावसे जो अपने स्वरूपमें ही स्थित रहता है और स्वयं कोई भी चेष्टा नहीं करता।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण