शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्।।15.8।।

śharīraṁ yad avāpnoti yach chāpy utkrāmatīśhvaraḥ gṛihītvaitāni sanyāti vāyur gandhān ivāśhayāt

।।15.8।।जैसे वायु गन्धके स्थानसे गन्धको ग्रहण करके ले जाती है, ऐसे ही शरीरादिका स्वामी बना हुआ जीवात्मा भी जिस शरीरको छोड़ता है, वहाँसे मनसहित इन्द्रियोंको ग्रहण करके फिर जिस शरीरको प्राप्त होता है, उसमें चला जाता है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण