अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।।

aśhāstra-vihitaṁ ghoraṁ tapyante ye tapo janāḥ dambhāhankāra-sanyuktāḥ kāma-rāga-balānvitāḥ

।।17.5।।जो मनुष्य शास्त्रविधिसे रहित घोर तप करते हैं; जो दम्भ और अहङ्कारसे अच्छी तरह युक्त हैं; जो भोग-पदार्थ, आसक्ति और हठसे युक्त हैं; जो शरीरमें स्थित पाँच भूतोंको अर्थात् पाञ्चभौतिक शरीरको तथा अन्तःकरणमें स्थित मुझ परमात्माको भी कृश करनेवाले हैं उन अज्ञानियोंको तू आसुर निश्चयवाले (आसुरी सम्पदावाले) समझ।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण