अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।

अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।।2.18।।

antavanta ime dehā nityasyoktāḥ śharīriṇaḥ anāśhino ’prameyasya tasmād yudhyasva bhārata

।।2.18।। अविनाशी, अप्रमेय और नित्य रहनेवाले इस शरीरी के ये देह अन्तवाले कहे गये हैं। इसलिये हे अर्जुन! तुम युद्ध करो।

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