अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।

तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।2.25।।

avyakto ’yam achintyo ’yam avikāryo ’yam uchyate tasmādevaṁ viditvainaṁ nānuśhochitum arhasi

।।2.25।। यह देही प्रत्यक्ष नहीं दीखता, यह चिन्तनका विषय नहीं है और यह निर्विकार कहा जाता है। अतः इस देहीको ऐसा जानकर शोक नहीं करना चाहिये।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण