देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।

तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।

dehī nityam avadhyo ’yaṁ dehe sarvasya bhārata tasmāt sarvāṇi bhūtāni na tvaṁ śhochitum arhasi

।।2.30।। हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! सबके देहमें यह देही नित्य ही अवध्य है। इसलिये सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये अर्थात् किसी भी प्राणीके लिये तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण