नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।

स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।।2.40।।

nehābhikrama-nāśho ’sti pratyavāyo na vidyate svalpam apyasya dharmasya trāyate mahato bhayāt

।।2.40।। मनुष्यलोकमें इस समबुद्धिरूप धर्मके आरम्भका नाश नहीं होता, इसके अनुष्ठानका उलटा फल भी नहीं होता और इसका थोड़ासा भी अनुष्ठान (जन्म-मरणरूप) महान् भयसे रक्षा कर लेता है।

Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण