बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।
buddhi-yukto jahātīha ubhe sukṛita-duṣhkṛite tasmād yogāya yujyasva yogaḥ karmasu kauśhalam
।।2.50।। बुद्धि-(समता) से युक्त मनुष्य यहाँ जीवित अवस्थामें ही पुण्य और पाप दोनोंका त्याग कर देता है। अतः तू योग-(समता-) में लग जा, क्योंकि योग ही कर्मोंमें कुशलता है।
Made with ❤️ by a Krishna-Bhakt like you! हरे कृष्ण